Poem On Nature In Hindi: क्या आप एक प्रकृति प्रेमी हैं? और अपने स्वभाव के अनुसार आप प्रकृति पर आधारित कविताओं के संग्रह की तलाश कर रहे हैं। आपकी इच्छा हमारी वेबसाइट पर पूरी होने जा रही है। हम आपके लिए कुछ चुनिंदा कविताऍं लेकर आए हैं, उम्मीद है आपको पसंद आएंगी। यह संग्रह समय-समय पर बढ़ता रहेगा इसलिए इसका आनंद लेने के लिए हमारे साथ जुड़े रहें।
Are you a nature lover? And according to your nature you are looking for collection of poems based on nature. Your wish is going to come true on our website. We have brought some selected poems for you, hope you will like them. This collection will keep increasing from time to time so stay connected with us to enjoy it.
Prakriti Par Kavita | मिट्टी के घरौंदे
आ रही सौंधी-सौंधी खुशबू ज़मीं से
करम मेघा का, कह रहा हूँ यकीं से
लोट लूँ मुट्ठी भर इसके आँचल तले
करूं याद लड़कपन के लम्हे हसीं से
आओ सखी, बना लें मिट्टी के घरौंदे
शायद उभरे मासूमियत यहीं कहीं से।
-राज सरगम
Aa rahi hai saundhi-saundhi Zameen se
Karam megha ka, keh raha hoon yaqeen se
Lot loon mutthi bhar iske aanchal tale
Karu yaad ladakpan ke lamhe haseen se
Aao sakhi bana lein mitti ke gharaunde
Shayad ubhare masoomiyat yahin kahin se.
जमुना तीरे
ये नदिया किनारे, मेरे साँझ-सवेरे
इन्हीं से सुकून इन्हीं में मेरे बसेरे
थे ललचाते जैसे साँवरे को जमुना तीरे
बस गए हैं दिल में मेरे भी धीरे-धीरे
है दुआ मलिक से, रहूं घुल के इनमें
रहें करते नृत्य गोपियों के सदृश सपने।
-राज सरगम
Ye nadiya kinare mere saanjh sawere
Inhi se sukoon inhi mein mere basere
The lalchaate jaise Saamwre ko Jamuna teere
Bas gaye hain dil mein mere bhi dhire-dhire
Hai duwa maalik se, rahun ghul ke inme
Rahein karte nrity Gopiyon ke sdrish sapne.
Images for Poem On Nature In Hindi | धरा स्वर्ग
मन को छू जाए, क्या नज़ारा है
धरा स्वर्ग, आसमानी सितारा है
दें दस्तक काले बदरा मानो केश
लगे, फिज़ा ने खुद को संवारा है
करे स्वागत हरेक का नेकदिली से
हाय नज़ाकत कोई मंदिर द्वारा है
पहने दुपट्टा हरा वसंत भरा तो
सूखे हृदयों में उफनती बहारा है
संभाले पतझड़ खुद के हालात
क्या आगे ज़रिया-ए-गुज़ारा है!
-राज सरगम
Man ko chhu jaye kya nazara hai
Dharaa swarg aasmani sitara hai
Dein dastak kaale badra mano kesh
Lage fiza ne khud ko samvara hai
Kare sawaagat harek ka nekdili se
Haay! nazaaqat koi mandir dwaara hai
Pehne dupatta Hara vasant bhara toh
Sukhe hridyon mein ubharti bahara hai
Sambhaale patjhad khud ke halaat
Kya aage zariya-e-guzara hai!
न कर छेड़खानी
न कर छेड़खानी मेरे वजूद से, पछताएगा
लगा प्रतिबंध, अन्यथा हाथ कानों पे लाएगा
रहें पड़ती बूँदें प्यार, दुलार, संस्कार की
रोम-रोम मेरा गीत तेरी महिमा के गाएगा
देख गौर से, डाल-पात, महकती पुरवाईयाँ
तुझे पुकारें, कर आत्मसात्, निकट पाएगा।
-राज सरगम
Poem On Nature In Hindi For Class 6 | शास्त्रीय संगीत
झूमे जब पवन, घुंघरू बजते हैं
कान में बाली माथे टीके सजते हैं
छू लेती है गाल जब सरररर से
अंतरात्मा के कण-कण रजते हैं
झील चक्षुओं की दे कमलों को जन्म
आ देहरी पे शास्त्रीय संगीत गरजते हैं।
-राज सरगम
Nature Related Poems In Hindi | भटके कस्तूरी
अरे, थाम ज़रा खुद को, कहाँ ऐसे नज़ारे मिलें
जानता हूँ स्वभाव तेरा है चंचल, संयम पी ले
ये उठती तरंगें पानी में, उठे शोर जवानी में
है कुदरत नाज़नीन*, हो रही शामिल कहानी में
गर दिल मेरा न रहे संग मेरे, क्या गम जीने में
धड़कें करोड़ों फिज़ा में, ले एक जोड़ूंगा सीने में।
-राज सरगम
Poem On Nature In Hindi For Class 7 | न रहे संग मेरे
अरे, थाम ज़रा खुद को, कहाँ ऐसे नज़ारे मिलें
जानता हूँ स्वभाव तेरा है चंचल, संयम पी ले
ये उठती तरंगें पानी में, उठे शोर जवानी में
है कुदरत नाज़नीन*, हो रही शामिल कहानी में
गर दिल मेरा न रहे संग मेरे, क्या गम जीने में
धड़कें करोड़ों फिज़ा में, ले एक जोड़ूंगा सीने में।
-राज सरगम
नाज़नीन- सुंदर, सबसे खूबसूरत महिला
Poem On Himachal Pradesh | हिमाचल
फ़ख़्र है बनाया बाल्यावस्था में उस माटी को निवाला है
महक में जिसकी लाखों-करोड़ों इत्रों का बोलबाला है
लिया है कुदरत ने जिसे निश्चिंतता से लबरेज़ गोद में
अन्य नहीं, वो मेरा हिमाचल खुशियों का उजाला है
मालूम नहीं खेती कर्मों की है या दमकती भाग्य रेखा है
हो जो भी, किया कार्य मेरी मातृभूमि ने बेहद निराला है
नहीं उपलब्ध रंग जितने, हैं बढ़कर पग-पग पे बोलियाँ
मिठास ऐसी, नहीं हैसियत गुड़ की जो हराने वाला है
करते हैं लोग विश्वास यहाँ सादा जीवन, उच्च विचार में
गर न हो यकीं तो देख लो पधार, दावा मैंने कर डाला है
नहीं जानते शहरों में ठीक से पड़ोसी भी, वक्त कहाँ किसे
दृष्टि में मुकम्मल गाँव यहाँ, लिया एक-दूजे का हवाला है
हों बुलंद जब ऊँचे पहाड़ों की चोटी पर, लगे जग सारा
है सामने इन आँखों के, लगता हर्ष से मुँह पर ताला है
कदम-कदम वास देवों का, कहलाए इसीलिए देवभूमि
आ तसव्वुर में लगती इन्हीं देवों संग सबकी पाठशाला है
आते हैं मेले यहाँ किसी झुण्ड से, कभी ये कभी वो प्रान्त
है ये रवायत हमारी, इसके रंगों ने हमें ढाला है
चारों दिशा हिम का आंचल, नाम इसीलिए हिमाचल
तड़पते हैं पहाड़ उमस से, कारण मिला सफेद दुशाला है
पड़ते नहीं पल्ले मेरे ये जन्मों के फेरे, जाना इसी जन्म
गर हो सत्य तो देना आश्रय दोहरा, बुनना ऐसा जाला है
है ढेर सारा कहने में, जाएगी बीत उम्र बयानबाज़ी में
लिख पाया कुछ अंश, स्वर्ग मानिंद धरा से पड़ा पाला है
आए जो भी शरण, होकर सदा के लिए रहे इसका
अपनाया सब को इसने, कोई भेद नहीं गोरा या काला है।
-राज सरगम
Nature Poetry Hindi | पेड़ों से हमको मिला क्या
छॉंव की दरकार वृक्ष से क्या मतलब
छाता लेकर चलेंगे, करे धूप बक-बक
कहते हो oxygen जीने को ज़रूरी है
लाएंगे खरीद कर कौन सी ज़्यादा दूरी है
पेड़ों से हमको मिला क्या, सिर्फ ठंडक
दौड़ाकर पैसा ले आएंगे a.c हम तुरंत
पेड़ों से मृदा मज़बूत हुई, बस इतना ही
और भी तरीके हैं इसके, क्या तुम भी
माना दिए होंगे पेड़ों ने हमें खाद्य पदार्थ
जी सकते हैं अब हम खाकर कंकड़ पार्थ
करे होंगे खत्म लूट कर औषधियों के ख़ज़ाने
तो ग़लत क्या, आगे Science है ना वो जाने
चलाया होगा इन पर एक औज़ार बार-बार
इन्हें कोई दर्द होता है! क्या तुम भी यार
भूल जाओ रूढ़िवादी सोच वृक्षारोपण की
होगा रेगिस्तां निकलेगी खान पेट्रोलियम की
फिर देखो नज़ारा, हर-सू रुपए-डोलरों की बारिशें
हो जाएंगी पूरी एक झटके में सारी ख्वाहिशें
है मानव इसी लापरवाही से खतरे के ढेर पर
चुकाएगा पक्का पृथ्वी की एक-एक चोट का कर।
-राज सरगम
Heart Touching Poem On Nature In Hindi Text | कब से मन मार रही है
कुदरत एक दौर बाद खुद को संवार रही है
चोरी-छिपे आईने में हसीं चेहरा उतार रही है
है कुछ समय एकांत में गुज़ारने की आकांक्षा
छोड़ दो अपने हाल पर कब से मन मार रही है
हरियाली बिंदी, फूलते प्रसून झुमके कान के
बहती हवाएँ सौंदर्य प्रसाधन इसकी शान के
झकझोर डाला था इसके नैसर्गिक सौंदर्य को
बैठेगी पहने ये कुछ क्षण वस्त्र वीरान के
झुण्ड पंछियों के करें चहलकदमी शहर में
करने लगी हवा नृत्य मिल के लहर-लहर में
दिखें पेड़ तले कुछ झुण्ड सील मछलियों के
गा रहे हैं ग़ज़ल मिलकर कुटुम्ब संग बहर में
गलियाँ जो हो चुकी हैं ध्वस्त हमारे शोर से
पसर गए हैं वहाँ ढेरों सन्नाटे लम्बे दौर से
न भाँप पाए हम इनकी मनोस्थिति को
छुपेंगे एक दिन हम अपने ही घर चोर से
है बिछी कुदरत के तिनके-तिनके में शांति
सोए बैठा है, मानो आ गई है नींद में क्रांति
न हम पक्ष के और न रह गए हैं विपक्ष के
फैसला प्रकृति के अधीन, देगी या नहीं शांति।
-राज सरगम
प्रकृति की सुंदरता पर कविता | आकाश वायु अग्नि पृथ्वी जल
आकाश वायु अग्नि पृथ्वी जल
आधार मानव के, हैं यही कल
हमारी संरचना में भूमिका इनकी
जिस प्रकार तर्जनी अनामिका कनकी
हो जाओ इनके महत्व से परिचित
रहेगा प्राणी इनके चलन से नियमित
संरक्षण इनका अत्यंत अनिवार्य
ये दिनचर्या है ना के अपरिहार्य।
-राज सरगम
Hindi Nature Poems | भविष्य कोंपलें
विकास के नाम पर हुआ केवल विनाश है
प्राकृतिक संपदाओं को मिला वनवास है
भूमि कटाव में मर्यादाएं अमर्यादित हुईं
रचयिता ऊंचाई पर अकेला बैठा हताश है
हवाएं हमारी कुटिलता से बुढ़ापा बन गईं
दंभी रोपित जंगल का हुआ पर्दाफाश है
किया शोषण प्रदूषण ने ढक Ozone परत
पराबैंगनी किरणों से जीवन चक्र ज़िन्दा लाश है
याद करो हाल की कुल्लू-मनाली की घटना
हर साधन बिखरा नज़र में आशियां-ए-ताश है
वैसे ये मानव जाति के लिए ख़तरे की घंटी है
लटके हमारे ऊपर अदृश्य जानलेवा पाश है
है पर्यावरण की तीमारदारी में भविष्य कोंपलें
चलो, प्रचुर प्यार लुटाते हैं, ना करेंगे उदास।
-राज सरगम
Best Nature Poems In Hindi | हसीन रुत बसंत
आयी है हसीन रुत बसंत
छुपे रजाई यहाँ-वहाँ अनंत
जवानी की दहलीज़ पे तिनका
जाग उठा घोर निद्रा से तुरंत
रूख हवाओं के दिखाएं तल्खियाँ
अधीन इनके फिज़ा की खामोशियॉं
डूबा हर कतरा बहार की ओस में
क्या खूब कस दी हैं रंगों ने फब्तियॉं
हर शख्स में हर्षोल्लास की अतिरेक
फूला ना समा पाए ये सब दृश्य देख
होता वश में तो रहता बसंत सदैव
ना लगने पाता कभी खिज़ॉं का सेक
कुदरत के नियम पतझड़ है बहार भी
स्वप्न गहनों में लदी दुल्हन, कहार भी
करेगी वितरण बनके महकता बसंत
ना लौटे कोई सूने हाथ, होगा खुमार भी!
-राज सरगम
Aayi hai haseen rut basant
Chhupe rajaai yahan-wahan anant
Jawani ki dehleez pe tinka
Jaag utha ghor nidra se turant
Rookh hawaon ke dikhayein talkhian
Adheen inke fiza ki khamoshian
Dooba har qatra bahaar ki oas mein
Kya khoob kas di hain rangon ne fabtian
Har shakhs mein harshollas ki atirek
Foola na sama paaye ye sab drishy dekh
Hota vash mein to rehta basant sadaiv
Na lagne pata kabhi khizan ka sek
Kudrat ke niyam patjhad hai bahaar bhi
Swapn gahano mein ladii dulhan, kahar bhi
Karegi vitran banke mehakta basant
Na laute koi soone haath, hoga khumaar bhi.
Top Poem on Nature in Hindi for Kids | नाज़-ओ-नखरा
रात अंधेरी ज़रूर है, पर सुकून का सबब बन जाती है
मौसम बेशक बदलता है, पर चलता नियमानुसार है
इसलिये इसकी हर बात मेरे लिए अदब बन जाती है
खोलता है मेरे लिए अतीत के वर्के नदी का किनारा
तो सौंदर्य अहसासों का मेरी ओर सरपट दौड़ पड़ता है
यही नाज़-ओ-नखरा मेरे लिए घड़ी गज़ब बन जाती है।
-राज सरगम
Raat andheri zarur hai par sukoon ka sabab ban jati hai
Mausam beshak badalta hai par chalta niyamaanusaar hai
Isliye iski har baat mere liye adab ban jaati hai
Kholta hai mere liye ateet ke varke nadii ka kinara
Toh saundarya ahsaason ka meri or sarpat daud padta hai
Yehi naaz-o-nakhra mere liye ghadi gazab ban jati hai.
aap ki har kavita mein aatma ka niwas hai…bahut sundar srijan
Bahut bahut dhanyavad aapka
Kudrt k prti Sacha pyar jhalkta hai en kvitaon me
Bahut bahut dhanyavad