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Small Love Story Hindi || शानी
प्रखर मनाली से दिल्ली के लिए रात के आठ बजे निकला था किन्तु रास्ते में जाम लगने संग ड्राइवर की कछुआ driving के चलते वह वहां दिन के अढ़ाई बजे पहुंच गया। ये देर से पहुंचना उसके लिए सुस्ताने वाली प्रक्रिया थी। सोचा था, दस से बारह घंटे में सफ़र आसानी से निपट जाएगा फिर भी अगर थोड़ा बढ़ाकर चलेंगे तो तेरह-चौदह घंटे… किन्तु इच्छा अनुसार कहां होता है।
वह पहली बार अपने family friend से मिलने मेरठ जा रहा था। नयी जगह, नये लोग, नये वातावरण को लेकर मन में उमंगें दूधिया उबाल मार रही थीं! उसने दिल्ली पहुंचकर मेरठ के लिए बस ली और वहां शाम के छह बजे पहुंचा।
उसने जैसे ही अपने दोस्त राघव के घर में प्रवेश किया शानी, जिसका घर राघव के घर से सटा हुआ था। उसने उनकी बात एक बार अपने फोन से कराई थी खुले बाल, माथे पर सुर्ख बिंदी, तन पर सादा सलवार कमीज़ पहने हुए जिसमें वह गज़ब की सुंदर लग रही थी, अचानक से कमरे में पधारी मानो उसने प्रखर के आने की ख़ुशबू हवाओं में सूंघी हो।
उसके आने से खिड़की के पर्दे हिल हिल कर नखरे दिखाने लगे, एक भीनी महक घूमंतू बन चारों कोण में चक्कर काटने लगी ऐसा लगा शानी की खूबसूरती पर हर कोई लट्टू है। तभी राघव बोला, “देखो ये मेरा मनाली वाला वही दोस्त है जिससे मैंने एक बार फोन पर तुम्हारी बात करवाई थी।” शानी ने नज़रें चार कर चुराईं और बिना एक शब्द कहे चली गई। उसके इस व्यवहार से प्रखर हैरत में पड़कर बोला! ‘इसे क्या हुआ? बिना जवाब दिए ही चल दी? माना मैं अजनबी हूँ पर तेरी बात का उत्तर देने में क्या हर्ज़ था!। भला कोई घर आए मेहमान के सामने ऐसा करता है!” और उसने मंद मुस्कान बिखेर दी। राघव कहता है,” ना, यार! शर्मा गयी होगी।”
हां, पर शानी के रवैये से ज़्यादा प्रखर को रात के जिस्म की गर्मी ने सताया। मौसम की उदंडता ने उसे ये सोचने पर बाध्य किया कि वह कल शाम ही घर लौटेगा।। उसका पालन-पोषण ऐसी जगह पर हुआ था जहां मई-जून में a.c का किरदार ठंडी बर्फीली हवाएं निभाती हैं इसलिए ऐसे विचार आना स्वाभाविक था।
जैसे-तैसे उजाले द्वारा रात को दो टुकड़ों में चीरने के बाद सुबह घर वापस जाने की बात उसने राघव से कह दी। वह बिना reaction दिए उसे गली में टहलने ले गया। संयोगवश दरवाज़े से बाहर निकलते ही शानी साइकिल लिए हुए सामने दिखी, शायद दुकान से कुछ सामान खरीदने गई थी। दोनों(राघव और शानी) ने आपस में बातें करनी शुरू कर दीं। प्रखर खुद को कबाब में हड्डी समझकर थोड़ा आगे की ओर सरक गया। ये देख शानी आंखें घुमाते हुए बोली, “अरे क्या हुआ? यहां से दूर क्यों हट गए? बात नहीं करोगे?”
प्रखर को इसी पल का इंतज़ार था। वह फूर्ति से पीछे मुड़ा और किसी बरसों पुराने क़रीबी की तरह व्यवहार करते हुए बोला, “मुझे तुमसे कल रात का बदला लेना है। तुम भी तो मुझसे बिना कुछ कहे कमरे से बाहर चली गई थीं।”
“सॉरी, वो क्या है कि मैं शर्मा गई थी!”, शानी ने आगे बढ़ते हुए कान पकड़े। “मज़ाक कर रहा हूं, यार! Don’t worry! मैं बहुत बातूनी हूं। थक जाओगी मेरी बातें सुन सुनकर।”, प्रखर मुस्कुराया। इस बीच राघव ने शिकायत की, “शानी, ये बड़ा अजीब आदमी है। कल शाम का आया बिस्तर से उठते ही घर लौटने की रट लगाए बैठा है। अब तुम अपने ढंग से समझाओ इसे।”
वह मुंह बनाते हुए बोली, “क्या ये सच है?” प्रखर ने जवाब दिया, “हां, गर्मी बहुत है, इसलिए।” शानी ने साइकिल आगे सरकाते हुए कहा” ओ हो, कल आए और आज लौटने की बीन बजाने लगे। रुको, थोड़ा आनंद लो। I know तुम बहुत lucky हो जिसे कुदरत ने अपनी शीतल गोद में जना और पाला है जो जेठ की भरी दोपहरी में भी तुम्हारे साथ बनी रहती है लेकिन हमें तो ना चाहते हुए भी पँखे का सहारा लेना ही पड़ता है। पर क्या यहाँ की गर्मी तथा हमें अपनी मेहमानबाज़ी का मौका नहीं दोगे? शायद ठीक लगे… बावजूद इसके अगर हम में से किसी एक से कोई कसर छूट जाये तो कल तुम शौक से चले जाना। कतई न रोकेंगे।”
शानी की इस बात ने प्रखर के भीतर उपजे पसीने पर शीतलता का पंखा झला दिया। उस चीनी के दाने जितने पल ने उन दोनों की दोस्ती में मीठेपन का बीज बो दिया और अगले एक दो दिनों में दोस्ती चीनी मील बन गई। मेरठ में पहली रात के उबाल का दंश झेलने के दौरान अगले दिन घर लौटने का इरादा पालने वाला लड़का रुकने पर विवश हो गया। शानी के लहजे में अपनेपन की अद्भुत तरावट थी।
एक दिन खूब बारिश हुई। प्रखर आनंदित होकर गली में निकल आया क्योंकि उसे बारिश बहुत पसंद थी। तभी देखता है कि शानी कॉलेज से पूरी तरह से भीगी आ रही है। उसे देखकर बोली, “तुम कितने अकड़ू हो! छाता लेकर नहीं आ सकते थे! देखो, कितनी भीग गई हूॅं।”
आहहहह! इस अधिकार भरे लहजे से सिहर उठने के साथ वह सकपका भी गया! “ले आता, अगर तुमने मुझे अपने कॉलेज का adress बताया होता!”, बस इतना भर कह पाया। “0hh! My fault!”, शानी हँस पड़ी।
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उसी शाम शानी ने उसे अपनी बालकनी में गप्पें मारने के लिए बुलाया। बातों बातों में उसने फोटो अल्बम निकाल कर सामने रख दिया। उसमें प्रखर को उसकी दो तस्वीरें जिनमें एक में वह साड़ी पहने हुए ख़ूबसूरती को मात देती नज़र आ रही थी वही दूसरी फोटो में कुछ सहेलियों के गुच्छे में जकड़ी हुई थी बहुत रास आईं, और कह उठा, “बहुत सुंदर लग रही हो इन फोटोज़ में… ले जाऊं?”
“हालांकि ये पिक्चर मेरी फेवरिट हैं पर तुम्हें मना नहीं कर सकती हूं, ले जाओ।”, शानी ने ये कहकर दे दीं।
प्रखर को शानी के इस सरल स्वभाव से प्यार हो गया। वह अब घर लौटने से पहले अपने प्यार का इज़हार हर हालत में करना चाहता था इसलिए बोला, “यार, शानी! परसों मैं वापस जा रहा हूॅं जाने से पहले मुझे तुम्हें कुछ बताना है… कल कहां हो?” शानी बेचैनी की तपन में झुलसते हुए बोली, “अभी कहो ना… कल का चेहरा क्यों देखें! रही कल की तो कल संडे है so घर पर रहूंगी। हां, तुम ना होते तो कहीं घूम आती।”
“ना… कल ही बताऊंगा। And thanks मेरे लिए तुम अपना Sunday बर्बाद करने जा रही हो!”, प्रखर हंसा। शानी ने भी मज़ाक़िया अंदाज़ में जवाब दिया,”हां, याद रहेगा कैसे किसी ने मेरा एक इतवार बेकार बना दिया था।”
अगले दिन शानी सारे काम निपटाने के उपरांत प्रखर से क़रीब सात बजे मिली। “कहो, क्या कहना था तुम्हें?”, पास बैठते हुए बोली।
“यार, देखो, मैं जो कहूंगा उस पर नाराज़ या गुस्सा मत होना।”, प्रखर ने कहा।
“नहीं होऊंगी। बोलो तुम…”, शानी ने मुट्ठी दबाई।
“I have written a mini true love love story in Hindi पर फिलहाल वो एकतरफा है। क्या तुम उसका पार्ट बनकर उसे complete करोगी ?”
“हाँ तो दिखाओ?”, शानी excited दिखी!
तुम समझी नहीं। I mean मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो। जब से तुम्हें देखा है तब से तुम्हारे पास रह रहा हूं। कहने को खाता-पीता सोता राघव के घर हूं पर जागता तुम्हारे आंगन में हूं। तुम्हारा साफ़ दिल होना मेरे प्यार का खिलना है। सीधे शब्दों में कहूँ तो I love you a lot. तुम मेरे बारे में क्या सोचती हो ये तुम बताओ।”, प्रखर ने हिम्मत करके मन की बात बोल दी।
शानी ने जवाब देने के लिए मुंह खोला ही था कि इस बीच उसका भाई आया, “अरे, शानी! रात के दस बज रहे हैं सो जाओ।” उसने जवाब दिया, “जा रही हूॅं भैया। प्रखर से बात कर रही थी।”
“जाओ प्रखर! तुम भी सो जाओ। रात बहुत हो चुकी है।”, शानी के भाई ने कहा।
“मैं क्या करूं? हां! कितने बजे निकल रहे हो कल? रुको ना एक-आध दिन! मेरा जवाब सुनते जाना… अभी मैं ज़्यादा नहीं कह सकती।”, शानी के मासूम चंद्रमुख पर बेचैनी की शिकन उभर आई।
“मैं सुबह पांच बजे जा रहा हूॅं। पर हो सके तो फोन पर जवाब दे देना। रुक जाता, पर परसों मेरा घर पर होना बहुत ज़रूरी है क्योंकि बहन को देखने लड़के वाले आ रहे हैं।”, प्रखर भारी मन से उठा।
ये अलग होना दोस्ती का अलग होना था या प्रेमियों का, कशमकश थी। वह चाहता था कि रात भर सामने बैठा रहे परन्तु समाज आड़े आ गया। कभी कभी इसके नियम हमें अपनी अभिलाषाओं को मारने पर उतारू कर देते हैं वही उसके साथ हुआ।
“घर पहुंचने पर मुझे भूल मत जाना।”, शानी ने आख़री शब्द कहे। “अरे, बाबा! ऐसा क्यों सोचती हो! मुझे तुम्हारे उत्तर का इंतज़ार रहेगा।”, प्रखर ने अंधेरों को चकमा देकर चुपके से हाथ पकड़कर कहा। पर परिस्थितियों का बंधुआ मजदूर हर व्यक्ति को बनना पड़ता है। कुछ ऐसा उनके साथ हुआ।
एक साल तक शानी की ओर से कोई कॉल अथवा मैसेज नहीं आया इस पर वह पर वह चिंतित हो उठा जबकि उसका नंबर भी नहीं लग रहा था। हालांकि वह राघव से उसके बारे में जान सकता था पर वह बीते आठ नौ महीनों से परिवार संग विदेश में जा बसा था। फिर प्रखर घूमने के बहाने शानी से मिलने उसके घर गया। वहां जाकर उसे मालूम हुआ उसकी शादी हो चुकी है। वह इस ख़बर से आहत हो गया।
शानी के साथ ज़िन्दगी बसर करने का हर ख़्वाब पांव से मसले सूखे पत्ते की तरह बिखर गया! वह डबडबाई आंखों से बालकनी को देखने लगा जहां उन दोनों ने आख़री लम्हे एक साथ गुज़ारे थे। शानी का परिस्थितिओं में भी मुस्कुराता रहने वाला आकर्षक चेहरा उसके सामने हाज़िर हो गया जिसने उसके गालों को सीलन से भर दिया। इसकी भनक उसे तब हुई जब गाल पर आए एक पिम्पल में जलन महसूस हुई। वह ज़ोर ज़ोर से रोना चाहता था परन्तु उसके पास वो कन्धा नहीं था जो उसे संभालता।
लेकिन दोष किस के सर मढ़ता उसे मालूम था भला करनी के आगे किसी की चलती है! उसने कारण जानने की कोशिश भी नहीं की कि ये सब कैसे और क्यों हुआ क्योंकि कभी-कभी ज़्यादा गहराई में गोता लगाने से हाथ में रत्नों की जगह कंकड़ भी आ जाते हैं जिससे हाथ लहूलुहान होने का खतरा पैदा हो जाता है। बेहतर है जो हुआ ठीक हुआ, मानकर संतुष्ट रहो।
उसके दिल से शानी के लिए भगवान से दुआ निकली “तुम अपने परिवार के साथ एक छोटे पौधे से पीपल बनो जिससे सुखद छांव तथा ताज़ी हवा आती रहे।” समय ने चाहा तो कभी हम बतौर वही पुराने दोस्त एक-दूजे के सामने ज़रूर आएंगे। यदि तुम्हारे मन में भी मेरे प्रति प्यार था तो उसे हम दोनों अंदर ही अंदर दबाएंगे। एक न हो पाने का कारण हमेशा अलगाव नहीं हो सकता कभी कभार समय पीठ पीछे से षड्यंत्र रचता है। वे भी उसी के शिकार हो गए थे।
-राज सरगम
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